
थकते नहीं नैना दृश्य निहार
हर मन कहे ये बारम्बार
आहा! सावन..कोटि कोटि आभार
धरा ने ओढी हरित चादर निराली
लहलहाए खेत बरसी खुशहाली
तन मन भिगोये रिमझिम फुहार
आहा! सावन.. कोटि कोटि आभार
भीगे गाँव ओ' नगर सारे
थिरकीं नदियाँ छोड़ कूल किनारे
अठखेलियाँ करे पनीली बयार
आहा! सावन.. कोटि कोटि आभार
दुष्यंत....