मैं चला था जहाँ से, वहां अब भी घना कुहरा खड़ा है
मेरे चलने से हुई है रोशनी, या वो ख़ुद ही पीछे मुडा है
वो कहते थे हमसे कि यूँ न बदलेगा नसीब
होने तो दो मुकाबला, देख लेंगे कौन बड़ा है
खैर सूरत पे ज़ोर जो चलता नहीं
लो कि आइना ही अब सोने में जड़ा है
मुझे तो दोनों ही चाहिए खुदा तुझसे
फैसला अब तेरे लिए मुश्किल बड़ा है.....
आदरणीय क्षितिज सर से सादर साभार प्राप्त......
दुष्यंत........
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago