मैं जब चाँदनी के साथ
छत पर टहलता हूँ
चाँद हाथों से छुपाती है
वो पगली सी लड़की
उसकी इस चुहल पर
जब खीज उठता हूँ मैं
तो खिलखिलाती मुस्कुराती है
वो पगली सी लड़की
मैं जब कागज़ पर
स्याही से ग़ज़ल लिखता ह
तो संग संग गुनगुनाती है
वो पगली सी लड़की
कभी जिदें बच्चों की मानिंद
कभी बुजुर्गों की सी बातें
मुझको हैरत दे जाती है
वो पगली सी लड़की
नाम नहीं जाना
शक्ल नहीं देखी
सिर्फ़ ख्वाबों को सजाती है
वो पगली सी लड़की
............ दुष्यंत
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
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