मुझे रात में ख़ुद से बेख़याली दे दे
जिससे खूबसूरत मेरी सहर बन जाए
या तो पलकों से बहता दरिया सूख जाए
या अब बहे तो ज़हर बन जाए
सोचता हूँ कहीं से खरीद लूँ वो चीज़ें
जिनसे ये दीवारें घर बन जाए
नए पौदे दिल की क्यारियों में रोप दो यारों
ज़रा और हसीं ये शहर बन जाए
दुष्यंत...........
तुम्हारे लिए
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मैं उसकी हंसी से ज्यादा उसके गाल पर पड़े डिम्पल को पसंद करता हूँ । हर सुबह
थोड़े वक्फे मैं वहां ठहरना चाहता हूँ । हंसी उसे फबती है जैसे व्हाइट रंग ।
हाँ व्...
5 years ago
1 comment:
क्यों भैया आजकल मस्जिद में जा के बैठ रहा है क्या...
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