
मैंने इस दिल पर बाँध सा बना दिया है
मुहब्बत का दरिया अब इसके पार होता नहीं
जाने क्यों अब जब भी लिखने बैठता हूँ
मेरी ग़ज़ल मे इश्क का अशआर होता नहीं
तुझसे नजदीकियां खो न दूँ इसलिए फासला रखा है मैंने
खुशनसीब हूँ की तू इस पर बेजार होता नहीं
आजकल नई हवा बह रही है इस शहर में
वरना यहाँ मौसम इतना खुशगवार होता नहीं
दुष्यंत........
1 comment:
good one>>>>
Post a Comment