Wednesday, April 30, 2008

अपने होठों पर ....

अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ
आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ

कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ

थक गया मैं करते-करते याद तुझको
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ

छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा
रोशनी हो घर जलाना चाहता हूँ

आखिरी हिचकी तेरे ही दर पर आए अब
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ

जनाब मोहतरम क़तील शिफाई .....

Wednesday, April 23, 2008

मैंने इस दिल पर.....


मैंने इस दिल पर बाँध सा बना दिया है
मुहब्बत का दरिया अब इसके पार होता नहीं

जाने क्यों अब जब भी लिखने बैठता हूँ
मेरी ग़ज़ल मे इश्क का अशआर होता नहीं

तुझसे नजदीकियां खो न दूँ इसलिए फासला रखा है मैंने
खुशनसीब हूँ की तू इस पर बेजार होता नहीं

आजकल नई हवा बह रही है इस शहर में
वरना यहाँ मौसम इतना खुशगवार होता नहीं
दुष्यंत........

अगर तलाश करो तो कोई मिल ही जाएगा
मगर हमारी तरह कौन तुझे चाहेगा

तुझे जरुर कोई चाहतों से देखेगा
मगर वो ऑंखें हमारी कहाँ से लाएगा

न जाने कब तेरे दिल पर नई दस्तक हो
मकान खाली हुआ है कोई तो आएगा

मैं अपनी राह में दीवार बन कर बैठा हूँ
अगर वो आया तो किस रस्ते से आएगा

तुम्हारे साथ ये मौसम फरिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सताएगा

सधन्यवाद, डॉ. बशीर बद्र
दुष्यंत..........

Monday, April 7, 2008

नवसंवत्सर मंगलमय हो .......

नव्दिवस, नव्मास नववर्ष और नव उल्लास लिए
फागुन गया चैत्र आया संग खुशियों का आभास लिए

शुभ हर घड़ी है आज संग शगुनो का वास लिए
करे नवारम्भ इस वर्ष का मन में विपुल विश्वास लिए

सुखी रहें निरोगी रहें किसी विपदा से न सामना हो
गुडी पड़वा तथा नवसंवत्सर पर 'दुष्यंत' की शुभकामना हो

दुष्यंत............