Wednesday, June 25, 2008

संसद भवन में.......


स्वांग धरे तरै तरै
कुरता और टोपी धरे
देखो कैसे कैसे आए
संसद भवन में

बातें करे बड़ी बड़ी
जनता की है किसे पड़ी
वही तो नेता कहाए
संसद भवन में

राज राज करे बस
नीति सारी भूल जाएँ
हैं सारे छंटे-छंटाये
संसद भवन में

भूख से हैं मरते जहाँ
हजारों औ लाखों लोग
ये बिना डकारे खाएं
संसद भवन में

इसे खरीद, उसे बेच, इसे जोड़, उसे तोड़
जैसे तैसे करके, लेते ये आकार हैं
ऐसे में भलाई की सुधि कब कौन लेवे
कहते हैं गठबंधन है, हम लाचार हैं
तुम्हारी तो परवाह करेंगे थोड़ा रुक कर
हाल-फिलहाल तो बचानी सरकार है
तुमने चुना, और चुनो, अब बैठे सर धुनों
पाँच साल हम बिताएं, संसद भवन में

कोई पांचवी है फ़ैल, कोई बीए एमए पास
अन्दर तो लगते सारे जाहिल गंवार हैं
इसने कही उसने सुनी, हो गई जो कहासुनी
हो जाती है गुत्थमगुथ्था, जूतमपैजार है
देख कर ये दृश्य सारे, अपने टीवी सैटों पर
देश की ये जनता होती कितनी शर्मसार है
शीत हो या मानसून सत्र, प्रश्न हो या शून्यकाल
मच्छी बाजार नजर आए संसद भवन में

चौरासी हो, बाबरी हो, बॉम्बे हो या हैदराबाद
कहीं न कहीं सबके अन्दर ही सूत्रधार हैं
कोई रचे नंदीग्राम, कहीं कोई और संग्राम
सारे के सारे इनके महान शाहकार हैं
बिना लाज, बिना शर्म, करते जाएँ ऐसे करम
देश की जनता से नहीं, इनको सरोकार है
निर्ममता से मरवाते हैं, जैसे ये निर्दोषों को तो
क्यूँ न हम भी आग लगायें संसद भवन में ....

दुष्यंत.............

Tuesday, June 10, 2008

मुझे रात में ख़ुद से ..........

मुझे रात में ख़ुद से बेख़याली दे दे
जिससे खूबसूरत मेरी सहर बन जाए

या तो पलकों से बहता दरिया सूख जाए
या अब बहे तो ज़हर बन जाए

सोचता हूँ कहीं से खरीद लूँ वो चीज़ें
जिनसे ये दीवारें घर बन जाए

नए पौदे दिल की क्यारियों में रोप दो यारों
ज़रा और हसीं ये शहर बन जाए

दुष्यंत...........