मुझे रात में ख़ुद से बेख़याली दे दे
जिससे खूबसूरत मेरी सहर बन जाए
या तो पलकों से बहता दरिया सूख जाए
या अब बहे तो ज़हर बन जाए
सोचता हूँ कहीं से खरीद लूँ वो चीज़ें
जिनसे ये दीवारें घर बन जाए
नए पौदे दिल की क्यारियों में रोप दो यारों
ज़रा और हसीं ये शहर बन जाए
दुष्यंत...........
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
1 comment:
क्यों भैया आजकल मस्जिद में जा के बैठ रहा है क्या...
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