Tuesday, June 10, 2008

मुझे रात में ख़ुद से ..........

मुझे रात में ख़ुद से बेख़याली दे दे
जिससे खूबसूरत मेरी सहर बन जाए

या तो पलकों से बहता दरिया सूख जाए
या अब बहे तो ज़हर बन जाए

सोचता हूँ कहीं से खरीद लूँ वो चीज़ें
जिनसे ये दीवारें घर बन जाए

नए पौदे दिल की क्यारियों में रोप दो यारों
ज़रा और हसीं ये शहर बन जाए

दुष्यंत...........


1 comment:

Sudhir Rana said...

क्यों भैया आजकल मस्जिद में जा के बैठ रहा है क्या...