Saturday, March 29, 2008

एक वाकया चंद पंक्तियाँ ........

भोपाल से रतलाम के सफर मे एक जोडा सामने की सीट पर ट्रेन मे बैठा था। मोह्तार्रम मुसलसल मोहतरमा पर बरस रहे थे और इल्जाम था कि वे इतनी ज्यादा पार्टियों मे क्यों शामिल होती हैं। लगातार नए पुराने वाकयों का हवाला देकर यह दर्शाने कि कोशिश की जा रही थी कि उनका बार बार शादी ब्याह या पार्टियों मे आना जाना उनके मियां को बिल्कुल पसंद नहीं है। हद तो तब हो गयी जब उन्होंने इसे लेकर उन्हें बेशर्म तक कह डाला। मैं उन्हें देखे जा रहा था और अचानक ये पंक्तियाँ जुबान पर आ गई ........


महफिलों मे आना जाना है तेरी बेतकल्लुफी
मुझे बेहयाई का गुमान हो गया
एक मन मुझसे कुछ कहे एक कहे कुछ
भीतर ही भीतर एक कत्ल ऐ आम हो गया ...........

पगली सी इक लड़की ........

मैं जब चाँदनी के साथ
छत पर टहलता हूँ
चाँद हाथों से छुपाती है
वो पगली सी लड़की

उसकी इस चुहल पर
जब खीज उठता हूँ मैं
तो खिलखिलाती मुस्कुराती है
वो पगली सी लड़की

मैं जब कागज़ पर
स्याही से ग़ज़ल लिखता ह
तो संग संग गुनगुनाती है
वो पगली सी लड़की

कभी जिदें बच्चों की मानिंद
कभी बुजुर्गों की सी बातें
मुझको हैरत दे जाती है
वो पगली सी लड़की

नाम नहीं जाना
शक्ल नहीं देखी
सिर्फ़ ख्वाबों को सजाती है
वो पगली सी लड़की
............ दुष्यंत

सृष्टि की अनमोल कृति ........



सृष्टि की अनमोल कृति
कभी दुलारती मां बन जाती
कभी बहन बन स्नेह जताती
बेटी बन जब पिया घर जाती
आँसू की धारा बह जाती
कभी पत्नी बन प्यार लुटाती
बहु बन घर को स्वर्ग बनाती
नारी तेरे बहुविध रूपों से
यह संसार चमन है
नारी दिवस पर हर नारी को बारम्बार नमन है

..........दुष्यंत

आओ हम तुम मिलकर ........


आओ हम तुम मिलकर
इस जहाँ में सच्चा प्यार ढूँढें
कुछ तुम्हारी रूबाइयों को देखें
कुछ मेरी ग़ज़ल के अशआर ढूँढें

मुहब्बत का दरिया भी रीत गया
ठूंठ इश्क के बाग़ हुए
इस चमन मे अब खिजां की बस्ती है
आओ हम इसके लिए बहार ढूँढें

कभी यहाँ शायर मुहब्बत की ग़ज़ल कहते थे
मौसिकी से दिल के साज़ बजते थे
वक्त की गर्द मे कहीं दफ्न हो गए
आओ हम वो सारे फनकार ढूँढें

कई बने मरीज ऐ इश्क कई दर्द ऐ दिल का शिकार हुए
कह गए हैं पुराने शायर यहाँ लोग ऐसे दिलदार हुए
ज़माने की भीड़ मे कहीं गुम हो गए
आओ हम वो सारे बीमार ढूँढें

.........दुष्यंत