मैं जब चाँदनी के साथ
छत पर टहलता हूँ
चाँद हाथों से छुपाती है
वो पगली सी लड़की
उसकी इस चुहल पर
जब खीज उठता हूँ मैं
तो खिलखिलाती मुस्कुराती है
वो पगली सी लड़की
मैं जब कागज़ पर
स्याही से ग़ज़ल लिखता ह
तो संग संग गुनगुनाती है
वो पगली सी लड़की
कभी जिदें बच्चों की मानिंद
कभी बुजुर्गों की सी बातें
मुझको हैरत दे जाती है
वो पगली सी लड़की
नाम नहीं जाना
शक्ल नहीं देखी
सिर्फ़ ख्वाबों को सजाती है
वो पगली सी लड़की
............ दुष्यंत
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
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