Saturday, March 29, 2008

आओ हम तुम मिलकर ........


आओ हम तुम मिलकर
इस जहाँ में सच्चा प्यार ढूँढें
कुछ तुम्हारी रूबाइयों को देखें
कुछ मेरी ग़ज़ल के अशआर ढूँढें

मुहब्बत का दरिया भी रीत गया
ठूंठ इश्क के बाग़ हुए
इस चमन मे अब खिजां की बस्ती है
आओ हम इसके लिए बहार ढूँढें

कभी यहाँ शायर मुहब्बत की ग़ज़ल कहते थे
मौसिकी से दिल के साज़ बजते थे
वक्त की गर्द मे कहीं दफ्न हो गए
आओ हम वो सारे फनकार ढूँढें

कई बने मरीज ऐ इश्क कई दर्द ऐ दिल का शिकार हुए
कह गए हैं पुराने शायर यहाँ लोग ऐसे दिलदार हुए
ज़माने की भीड़ मे कहीं गुम हो गए
आओ हम वो सारे बीमार ढूँढें

.........दुष्यंत

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