Thursday, May 1, 2008

बादलों का .........


बादलों का काफिला आता हुआ देख कर अच्छा लगता है
प्यासी धरती को सावन का मंज़र अच्छा लगता है

इस भरी महफिल-ऐ-दुनिया मे उसका चंद लम्हों के लिए
मुझसे बात करना, मिलना और देखना अच्छा लगता है

जिन का सच होना किसी सूरत मे भी मुमकिन नहीं
ऐसी ऐसी बातें अक्सर सोचकर अच्छा लगता है

वो तो क्या आएगा मगर खुश्फह्मियों के साथ साथ
सारी सारी रात हमको जागना अच्छा लगता है

मैं उसे हाल-ऐ-दिल नहीं बताऊंगा मगर
ख्वाबों मे ऐसे वाकये बुनकर अच्छा लगता है

पहले पहले तो निगाहों में कोई जंचता नहीं था
रफ्ता रफ्ता अब दूसरा फ़िर तीसरा अच्छा लगता है

दुष्यंत ............

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