मेघों का अम्बर में लगा अम्बार
थकते नहीं नैना दृश्य निहार
हर मन कहे ये बारम्बार
आहा! सावन..कोटि कोटि आभार
धरा ने ओढी हरित चादर निराली
लहलहाए खेत बरसी खुशहाली
तन मन भिगोये रिमझिम फुहार
आहा! सावन.. कोटि कोटि आभार
भीगे गाँव ओ' नगर सारे
थिरकीं नदियाँ छोड़ कूल किनारे
अठखेलियाँ करे पनीली बयार
आहा! सावन.. कोटि कोटि आभार
दुष्यंत....
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago