मैं चला था जहाँ से, वहां अब भी घना कुहरा खड़ा है
मेरे चलने से हुई है रोशनी, या वो ख़ुद ही पीछे मुडा है
वो कहते थे हमसे कि यूँ न बदलेगा नसीब
होने तो दो मुकाबला, देख लेंगे कौन बड़ा है
खैर सूरत पे ज़ोर जो चलता नहीं
लो कि आइना ही अब सोने में जड़ा है
मुझे तो दोनों ही चाहिए खुदा तुझसे
फैसला अब तेरे लिए मुश्किल बड़ा है.....
आदरणीय क्षितिज सर से सादर साभार प्राप्त......
दुष्यंत........
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago