Thursday, July 16, 2009

मैं चला था जहाँ से ......

मैं चला था जहाँ से, वहां अब भी घना कुहरा खड़ा है
मेरे चलने से हुई है रोशनी, या वो ख़ुद ही पीछे मुडा है

वो कहते थे हमसे कि यूँ बदलेगा नसीब
होने तो दो मुकाबला, देख लेंगे कौन बड़ा है

खैर सूरत पे ज़ोर जो चलता नहीं
लो कि आइना ही अब सोने में जड़ा है

मुझे तो दोनों ही चाहिए खुदा तुझसे
फैसला अब तेरे लिए मुश्किल बड़ा है.....
आदरणीय क्षितिज सर से सादर साभार प्राप्त......
दुष्यंत........

4 comments:

Vinay said...

अच्छे अशआर हैं
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गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम

ओम आर्य said...

bahut hi badhiya

Unknown said...

u shud join india's elite shayar's group if there is any...gud gud.

Unknown said...

khuda se jo mang bethe aap.....
ye sach hai ki,
ye ab to unke liye bhi mushkil bada hai...
kiyoun chahiye wo auron si surat ya wo sone ka jada aaiyina.....
jo khuda ne diya aap ko(bhawnayen aur mann)wo to in sabse bada hai...