Friday, September 11, 2009

इस पिघलती शाम.....

इस पिघलती शाम को अपना बनाया जाए
उसका ज़िक्र छेड़ो, कुछ सुना-सुनाया जाए

आंखों में खलल देती है शमअ बेवफा
बुझा दो इसे, वफ़ा का सबक सिखाया जाए

अक्सर ख़याल-ऐ-यार ही देता है खुमारी
ज़रा जाम भी भरो यारों, इसे और बढाया जाए

गहराया है नशा, ज़रा तेज़ रक्स हो
गहरा गई है रात, ख़्वाब कोई सजाया जाए
दुष्यंत......

8 comments:

अनिल कान्त said...

mujhe aapki rachna padhkar bahut achchha laga

Udan Tashtari said...

आंखों में खलल देती है शमअ बेवफा
बुझा दो इसे, वफ़ा का सबक सिखाया जाए

-बहुत उम्दा!

bhanu said...

rachna to likhi hai but rachna kaha hai.

निशा Sharma said...

Acchhi hai urdu k alfazon ka istaimal aap ney soch kar kiya hai.bas agli baar ye galti mat karna..or shabdon ko nirantar behneywaley dhara prvah ki tarhan aaney dena....jisse aap ki nazm or nikhar jayegi....

Kirtish Bhatt said...

Ati Sundar!!

Sudhir Rana said...

अच्छा है भाई.... लिखते रहो...

Unknown said...

dum hai!!

Unknown said...

very nice...