इस पिघलती शाम को अपना बनाया जाए
उसका ज़िक्र छेड़ो, कुछ सुना-सुनाया जाए
आंखों में खलल देती है शमअ बेवफा
बुझा दो इसे, वफ़ा का सबक सिखाया जाए
अक्सर ख़याल-ऐ-यार ही देता है खुमारी
ज़रा जाम भी भरो यारों, इसे और बढाया जाए
गहराया है नशा, ज़रा तेज़ रक्स हो
गहरा गई है रात, ख़्वाब कोई सजाया जाए
दुष्यंत......
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
8 comments:
mujhe aapki rachna padhkar bahut achchha laga
आंखों में खलल देती है शमअ बेवफा
बुझा दो इसे, वफ़ा का सबक सिखाया जाए
-बहुत उम्दा!
rachna to likhi hai but rachna kaha hai.
Acchhi hai urdu k alfazon ka istaimal aap ney soch kar kiya hai.bas agli baar ye galti mat karna..or shabdon ko nirantar behneywaley dhara prvah ki tarhan aaney dena....jisse aap ki nazm or nikhar jayegi....
Ati Sundar!!
अच्छा है भाई.... लिखते रहो...
dum hai!!
very nice...
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