Tuesday, September 29, 2009

दियार-ऐ-इश्क से गुजर जाने से पहले........

दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,
थे होशमंद, न थे दीवाने से पहले
*इश्क का शहर

सब्ज़ बाग़, सुर्ख गुल हम देख ही न पाये,
खिजां आ गई बहार आने से पहले

बज़्म* में उनकी मुहब्बत एक तमाशा है,
मालूम न था हमें, वहां जाने से पहले
*बज़्म- महफिल

मेरा नाखुदा* तो नाशुक्रा निकला,
रज़ा भी न पूछी, डुबाने से पहले
*नाखुदा- मल्लाह, नाविक

कैस, फरहाद, रांझा तो बीते दिनों की बात है,
राब्ता* रखिये जनाब, नए ज़माने से पहले
*राब्ता- ताल्लुक, संपर्क

वादी-ऐ-मुहब्बत की रंगतें तो धोखा है,
ये चंद शेर पढ़ लेना दिल लगाने से पहले

दुष्यंत................

3 comments:

Unknown said...

dil ko kahan maloom tha......
par ab ehsas hua,ek dost hai aap sa....
har zakham khane se pehele....

swati said...

sirji bahut khub bayan kiya hai haale dil......;0

Unknown said...

maza aa gaya sir, really nice jahan tak shabdon ki baat hai. aur jahan tak ehsas ki baat hai to us dukh tak pahuchne ki kosis bher hi kar sakta hun.