घिर आये स्याह बादल सरे शाम
और उदास ये जेहन क्यूँ हुआ
पोशीदाँ अहसास क्यूँ उभर आये
ये दिल तनहा दफ्फअतन क्यूँ हुआ
यूँ तो अब तक चेहरे की ख़ुशी छुपाते थे
ग़म छुपाने का ये जतन क्यूँ हुआ
कोई चोट तो गहरी लगी होगी
ये संगतराश यूँ बुतशिकन क्यूँ हुआ
दुष्यंत......
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
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मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago
3 comments:
Jiyo guru... Bohot achcha laga...
Jaldi esai aur poems padhna chahenge...
syaam raat ka saya hu
bhut sukun dene wala hu
kbhi brasta baadal jla deta h
kabhi janmo ki pyas bujhata hu
mujhe le lo,jesa bhi chaho tum
me tumhara hi to "fesla" hu.
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