भोपाल से रतलाम के सफर मे एक जोडा सामने की सीट पर ट्रेन मे बैठा था। मोह्तार्रम मुसलसल मोहतरमा पर बरस रहे थे और इल्जाम था कि वे इतनी ज्यादा पार्टियों मे क्यों शामिल होती हैं। लगातार नए पुराने वाकयों का हवाला देकर यह दर्शाने कि कोशिश की जा रही थी कि उनका बार बार शादी ब्याह या पार्टियों मे आना जाना उनके मियां को बिल्कुल पसंद नहीं है। हद तो तब हो गयी जब उन्होंने इसे लेकर उन्हें बेशर्म तक कह डाला। मैं उन्हें देखे जा रहा था और अचानक ये पंक्तियाँ जुबान पर आ गई ........
महफिलों मे आना जाना है तेरी बेतकल्लुफी
मुझे बेहयाई का गुमान हो गया
एक मन मुझसे कुछ कहे एक कहे कुछ
भीतर ही भीतर एक कत्ल ऐ आम हो गया ...........
तुम्हारा दिसंबर खुदा !
-
मुझे तुम्हारी सोहबत पसंद थी ,तुम्हारी आँखे ,तुम्हारा काजल तुम्हारे माथे पर
बिंदी,और तुम्हारी उजली हंसी। हम अक्सर वक़्त साथ गुजारते ,अक्सर इसलिए के, हम
दोनो...
4 years ago