Monday, February 1, 2010

घिर आये..

घिर आये स्याह बादल सरे शाम
और उदास ये जेहन क्यूँ हुआ
पोशीदाँ अहसास क्यूँ उभर आये
ये दिल तनहा दफ्फअतन क्यूँ हुआ
यूँ तो अब तक चेहरे की ख़ुशी छुपाते थे
ग़म छुपाने का ये जतन क्यूँ हुआ
कोई चोट तो गहरी लगी होगी
ये संगतराश यूँ बुतशिकन क्यूँ हुआ
दुष्यंत......

Tuesday, October 13, 2009

आज तिमिर का नाश हुआ.....


आज तिमिर का नाश हुआ
दीपों की लगी कतार
कार्तिक अमावस्या लेकर आई
यह आलोकित उपहार

द्वार द्वार पर दीप जलें
घर घर हुआ श्रृंगार
हर देहरी प्रदीप्त हुई
बिखरा हर्ष अपार

झाड़ बुहार आँगन को
लक्ष्मी को दें आमंत्रण
करबद्ध हो सब करें
मन से रमा का वंदन
सभी को शुभ दीपावली...
दुष्यंत..........

Tuesday, September 29, 2009

दियार-ऐ-इश्क से गुजर जाने से पहले........

दियार-ऐ-इश्क़* से गुजर जाने से पहले,
थे होशमंद, न थे दीवाने से पहले
*इश्क का शहर

सब्ज़ बाग़, सुर्ख गुल हम देख ही न पाये,
खिजां आ गई बहार आने से पहले

बज़्म* में उनकी मुहब्बत एक तमाशा है,
मालूम न था हमें, वहां जाने से पहले
*बज़्म- महफिल

मेरा नाखुदा* तो नाशुक्रा निकला,
रज़ा भी न पूछी, डुबाने से पहले
*नाखुदा- मल्लाह, नाविक

कैस, फरहाद, रांझा तो बीते दिनों की बात है,
राब्ता* रखिये जनाब, नए ज़माने से पहले
*राब्ता- ताल्लुक, संपर्क

वादी-ऐ-मुहब्बत की रंगतें तो धोखा है,
ये चंद शेर पढ़ लेना दिल लगाने से पहले

दुष्यंत................

Friday, September 11, 2009

इस पिघलती शाम.....

इस पिघलती शाम को अपना बनाया जाए
उसका ज़िक्र छेड़ो, कुछ सुना-सुनाया जाए

आंखों में खलल देती है शमअ बेवफा
बुझा दो इसे, वफ़ा का सबक सिखाया जाए

अक्सर ख़याल-ऐ-यार ही देता है खुमारी
ज़रा जाम भी भरो यारों, इसे और बढाया जाए

गहराया है नशा, ज़रा तेज़ रक्स हो
गहरा गई है रात, ख़्वाब कोई सजाया जाए
दुष्यंत......

Thursday, July 16, 2009

मैं चला था जहाँ से ......

मैं चला था जहाँ से, वहां अब भी घना कुहरा खड़ा है
मेरे चलने से हुई है रोशनी, या वो ख़ुद ही पीछे मुडा है

वो कहते थे हमसे कि यूँ बदलेगा नसीब
होने तो दो मुकाबला, देख लेंगे कौन बड़ा है

खैर सूरत पे ज़ोर जो चलता नहीं
लो कि आइना ही अब सोने में जड़ा है

मुझे तो दोनों ही चाहिए खुदा तुझसे
फैसला अब तेरे लिए मुश्किल बड़ा है.....
आदरणीय क्षितिज सर से सादर साभार प्राप्त......
दुष्यंत........

Monday, January 5, 2009

चहुँ ओर यही हवा..युवा,युवा,युवा (१२ जनवरी 'युवा दिवस' पर विशेष0



बीते कुछ सालों के राष्ट्रीय परिदृश्य पर नज़र डालें तो आसानी से यह बात समझ आ जाती है की भारतीय युवा शक्ति सार्थकता के पथ पर अग्रसर है की नहीं। चाहे ओलम्पिक में स्वर्ण जीतने की 'अभिनव' शुरुआत हो या शह और मात से मिला विश्वविजय का 'आनंद'। चाहे मुष्टि प्रहारों से हासिल 'बिजय' हो या फौलादी बाजुओं की 'सुशील' जीत। हरी गेंदों पर करा प्रहार कर 'सनसनी' बनी सानिया हो या अपनी एकादश के साथ जग जीतने वाले 'महेंद्र' , हर कहीं बही एक ही हवा..युवा युवा युवा...। न सिर्फ़ खेलों में बल्कि राजनीति में भी युवाओं ने दर्शा दिया है की वे 'नवीन' विचारधारा के पोषक हैं और इतने 'राहुल' हैं की जिम्मेदारियों को समझ कर उनका निर्वहन कर सकते हैं। बॉलीवुड अगर सीमायें लाँघ कर सात समुन्दर पार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है तो इसके पीछे ईंधन का काम युवा शक्ति ही कर रही है। कोई हैरत नहीं की आज का युवा समय आने पर अपने किसी साथी 'मंजुनाथन' की हत्या पर अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने के लिए खड़ा हो जाता है तो 'राधे भइया' की तरह बाल बढाकर या 'गजनी' की तरह सिर मुंडाकर मौजमस्ती और फैशनपरस्ती करने में भी उतना ही अव्वल है। अन्तरराष्ट्रीय परिदृश्य पर देश का नाम प्रतिष्ठापित करने में युवाओं की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। देश की ४२ फीसद आबादी युवा है , तभी तो अन्तरिक्ष के विस्तार से लेकर ज्ञान के प्रसार और खेल के मैदान की हुंकार तक भारतीय युवाओं का वर्चस्व है। राष्ट्रीय पटल पर भी युवाओं ने अपनी उपस्थिति का अहसास हर क्षेत्र में कराया है। किसी कवि की ये पंक्तियाँ भी यहाँ याद आ रही है.... यौवन सुरा जगी है...मेरे तनबदन में ये कैसी आग लगी है...। तो युवा जाग्रत है, चिंगारी अब आग बन गई है। वक्त आ गया है की अब तथाकथित 'अनुभवी' बुजुर्ग सुपरवाईजर की भूमिका अदा करें और फिल्ड ऑफिसर के रूप में युवाओं को आगे आने का मौका दिया जाए।
दुष्यंत...

Friday, November 28, 2008

किसी और के पास कहाँ ....

तुम्हारी जो ख़बर हमें है
वो किसी और के पास कहाँ
देख लेता हूँ कहकहों में भी
आंसू के कतरे
ऐसी नजर किसी और के पास कहाँ

ज़माने ने ठोकरें दी पत्थर समझकर
तुने मुझे सहेज लिया मूरत समझकर
होगी अब हमारी गुजर
किसी और के पास कहाँ

उम्र भर देख लिया
बियाबान में भटक कर
हासिल हुआ कुछ नहीं
दुनिया में अटककर
तूने की जैसी कदर
किसी और के पास कहाँ

रास्ता दिखा दिया तुने
मेरे भटकाव को
साहिल पे ला दिया
थपेडों से नाव को
मुझ पर जितना तेरा असर
किसी और के पास कहाँ

दुष्यंत .......